Jul 16, 2020
नई दिल्ली, सीमा झा।
चिंता, डर और हताशा के काले बादल हैं, तो उम्मीदों की रोशनी भी है। मुश्किल समय में स्व-अनुशासन के बल पर नई इबारत लिखने वाले लोग हैं तो मुश्किलों से घबराकर बीच राह में ठहर जाने वाले भी। ऐसे में जाने माने मोटिवेशनल स्पीकर, लेखक शिव खेड़ा से जाना कि आखिर वे कौन से मंत्र हैं जो मुश्किल समय में हमारी संकल्प शक्ति को मजबूत बनाते हैं और पथरीली राह पर आश्वस्त होकर चलना सिखाते हैं…
मैं समझता हूं कि संकट बड़ा है और पूरी दुनिया इसकी गिरफ्त में है। यह इतना बड़ा और प्रभावी है कि हमारी जिंदगी, जीविका, जीवनशैली सब बदल गई है। जिंदगी का हिसाब ऐसा है कि कौन, किस समय ‘क्वारंटाइन’ होने के लिए मजबूर होगा, नहीं मालूम। बेशक कामकाज के सिलसिले में बाहर निकल रहे हैं लोग, पर किसी भी एक पल में कुछ भी हो सकता है। दुनियाभर की चिंतित सरकारें अर्थव्यवस्था को बचाने की कवायद में जुट गई हैं ताकि लोगों की नौकरी-रोजगार का स्थायी संकट न आ जाए। अब सरकारें यह भी मान रही हैं कि ग्लोबलाइजेशन के कारण वे दूसरे देशों पर कितने ज्यादा निर्भर थे।
यही कारण है कि अब ‘लोकलाइजेशन’ की बात हो रही है, ‘आत्मनिर्भरता’ पर बल दिया जा रहा है। इस परिदृश्य में मन पर भारी दबाव है, जिंदगी जद्दोजहद भरी है। तनाव है, गुस्सा है, आक्रोश है। ग्लानि है। पर क्या इस मनोदशा के बावजूद आप अपने जीवन को रचनात्मक रुख दे सकते हैं? यकीनन हम अपनी जीवनी शक्ति और नियमित प्रयासों के बल पर ही मुश्किल जीवन का रुख सकारात्मक दिशा में मोड़ सकते हैं।
जो भूले थे, उन्हें वापस पाना है : जब संकट सिर पर नहीं था, तब हमारी जिंदगी एक अंधाधुंध दौड़ बन गई थी। हर किसी की जुबान पर ‘टाइम नहीं है’ का जुमला ठहरा हुआ था। समय नहीं है की शिकायत तब थी जब हमारे पास समय बचाने के लिए इतने यंत्र-उपकरण मौजूद हैं। दरअसल, ऐसा इसलिए था क्योंकि हम अपनी प्राथमिकताओं को लेकर असमंजस में थे। जब भी हम क्या महत्वपूर्ण है और क्या अति-आवश्यक है, यह भूलते हैं तो परेशानी तय है। जब महत्वपूर्ण को भूल जाते हैं तो वही अतिआवश्यक बन जाता है। आखिर महत्वपूर्ण क्या है? वही जो रोजाना हमें करना था। साफ-सफाई, पर्यावरण, सेहत और अपने रिश्ते का ध्यान। आप खुद याद करें, भागदौड़ भरे जीवन में इन सबकी सबसे अधिक अनदेखी हुई थी, इसीलिए ये अतिआवश्यक यानी अर्जेंट में बदलते गए। इन्हें वापस अपने जीवन में महत्वपूर्ण बनाना है, ऐसा संकल्प लेने का सही समय है यह।
और मजबूत होते गए: लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा के मामलों का बढ़ जाना चिंतनीय है। छोटी-छोटी बातों पर परेशान हो रहे हैं लोग। साथ रहने और सामंजस्य बिठाने में परेशानी हो रही है। वे इतने उलझे और बेसब्र हैं कि भावनाओं के गुलाम हो गए हैं। जो मन में आता है वे करते हैं, बेकाबू हैं। पर ये वही लोग हैं जो जीवन की कीमत समझते नहीं या कभी समझा नहीं। गौर करें तो यहीं पर आपको वे लोग भी मिल जाएंगे, जो इस मुश्किल समय में भी गजब के धैर्य और साहस का परिचय दे रहे हैं। वे मजबूत तो पहले से थे पर अब वे और तपकर निखर रहे हैं। उनसे मिलकर पूछना चाहिए कि यह मजबूती कहां से आई, जवाब होगा खुद पर काम करने के प्रति वे पहले भी गंभीर थे। इस पर उनका ध्यान पहले भी था और आज भी है।
जिंदगी समझौता है और एक फैसला भी : अपनी किताब ‘यू कैन अचीव मोर’ में मैंने एक बात लिखी है। जिंदगी एक समझौता है तो एक फैसला भी है। यदि आपका किसी से टकराव है तो आप सामने वाले को भी टकराव और बुरे बर्ताव का मौका देते हैं यानी फैसला करते हैं। अगर सेहत का ध्यान नहीं रखते तो आप बीमारियों को बुलाने का फैसला करते हैं। रोज व्यायाम करते हैं, अपना खयाल रखते हैं तो यह अपनी सेहत को अच्छा रखने का फैसला है। सच बोलते हैं, सामने वाले की भावनाओं के प्रति संवेदनशील हैं तो आप एक विश्वसनीय इंसान बनने का फैसला लेते हैं। कई बार मुझसे लोग पूछते हैं कि जो सफल होते हैं क्या वे गलती नहीं करते। मैं यही कह सकता हूं कि वे गलती जरूर करते हैं, पर याद रखें गलती का एहसास हो जाने के बाद वे उसे दोहराते नहीं। यह भी ध्यान रखना है कि एक-दो बार अच्छा काम कर लेने वाले भी सफल नहीं हैं। जो इसमें निरंतरता रख पाने में कामयाब हैं, वही समाज में उदाहरण बनकर सामने आते हैं।
विश्वास मजबूती, अंध-विश्वास कमजोरी : संकट सामने होता है तो लोग भविष्यफल बताने वालों के पास दौड़ पड़ते हैं। अखबारों, टेलीविजन में ऐसे कार्यक्रम लोग खूब देखते हैं। पर क्या आपको लगता है कि अंधविश्वास खुद में भरोसा बढ़ाने में आपकी सचमुच मदद करता है, बेशक नहीं। भरोसा तब बढ़ता है जब आप अपनी कोशिशों से कुछ हासिल करते हैं और खुद के प्रति सम्मान का भाव जगाते हैं। उतार-चढ़ाव तो हर किसी की जिंदगी का हिस्सा है। उतार के समय यदि आप खुद का मूल्यांकन करने में समय लगाएं, इस पर काम करें तो संभव है तस्वीर बदल जाए। खुद पर विश्वास रखने वाले लोग हमेशा खुद की जिम्मेदारी लेते हैं, अपनी गलतियों से सीखते हैं।
वहीं अंधविश्वास अक्सर दोषारोपण के लिए उकसाता है। अपने काम पर एकाग्र नहीं रह पाते लोग। इसलिए अंधविश्वास में खुद को उलझाने के बजाय अपनी शक्ति पर भरोसा करें। आप जानते हैं कि हर धर्म यही शिक्षा देता है कि सेवा भाव से मजबूती मिलती है। हम यह न भूलें कि मानवता का धर्म सबसे बड़ा है। इस संदर्भ में सिख धर्म की पूरे संसार में सराहना होती है। उन्हें सम्मानित किया गया है।
कामयाबी और किताबें: जीवन की बागडोर अपने हाथ में रखने वाले लोग खुद को लगातार समृद्ध करते रहते हैं। ‘यू कैन अचीव मोर’ किताब के हवाले से कहूं, तो इसमें उन अरबपतियों और खरबपतियों की बातें हैं जिन्हें केवल 15 प्रतिशत संपति पूर्वजों से मिली थी। शेष उन्होंने अपने दम पर अर्जित किया। उन्होंने अपनी सफलता में किताबों से अपनी दोस्ती बताई है। वे तमाम व्यस्तताओं के बाद भी साल में 50 किताबें पढ़ लेते हैं यानी सप्ताह में एक किताब जरूर। वे ‘सेल्फ हेल्प’ बुक को पढ़ना पसंद करते हैं। उनका तर्क यह है कि इन किताबों से उन्हें अपने विचारों और आइडिया के प्रति आश्वासन मिलता है। लर्निंग और अर्निंग के इस खूबसूरत विचार पर आपको जरूर सोचना चाहिए। वक्त और पैसे न होने की शिकायत को भूलकर आज से ही इस पर अमल करें। खुद से मिलाने में किताबें जितना सहयोग कर सकती हैं, उतना दूसरे साधन नहीं।
रिश्तों की पूंजी पर करें फोकस: हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन के अनुसार वे लोग अपेक्षाकृत अधिक स्वस्थ और खुश रहते हैं, जिनके रिश्ते अच्छे हैं। यही आपकी पूंजी है और बैंक बैलेंस भी। ये न रहें तो आप अधिक असुरक्षित और कमजोर महसूस कर सकते हैं। मुश्किल घड़ी में आप एक फोन कॉल पर अपनों से वह काम करा सकते हैं जो लाखों देकर भी संभव नहीं। ध्यान दें, रिश्ते दो चार भी हों तो जीवन में शांति रहती है। देखें कि कहीं आपके करीबी रिश्ते ही तो अनदेखे नहीं हैं। जो पास हैं कहीं वही सबसे दूर तो नहीं। यदि हां, तो ऐसा अक्सर होता है। लेकिन जागें। इन्हें संभालने-संवारने में जुट जाएं। ये चंद अपने लोग आभासी दुनिया के हजारों दोस्तों पर भारी हैं।
अवसाद व बोरियत की शिकायतें: यदि आप बोर हो रहे हैं तो जरा सोचिए, कहीं आप खुद में ‘बोर’ व्यक्ति तो नहीं। यह बुरा मानने वाली बात नहीं, सामान्य चीज है। दरअसल, ज्यादातर लोगों को एकांत और अकेलेपन का अंतर नहीं पता। खुद में आनंद महसूस करने के लिए आपको औरों की जरूरत नहीं होती। अवसाद की शिकायत भी आम है। इस पर अमेरिका के जाने-माने मनोचिकित्सक कार्ल मेनिंजर की बड़ी खूबसूरत सलाह है। उनसे पूछा गया कि जब आपके मरीज अवसाद की स्थिति में जाने वाले हों तो आप उन्हें क्या सलाह देंगे तो उनका जवाब जानिए। उन्होंने कहा, जब ऐसा लगे तो अंदर से दरवाजा बंद कर लें और घर में उन्हें तलाशें जो दुख-तकलीफ में हैं, उनकी मदद करें, आप अच्छे हो जाएंगे। इसी तरह, शहर के कोने में जाकर देखिए, कौन मुश्किल में है, उसकी मदद कीजिए। अवसाद नहीं दबोचेगा। इस तरह आप बच सकते हैं खुद को पीड़ित महसूस करने से।
समस्या नहीं, तो जीवन भी नहीं: नॉर्मन विसेंट ने बताया कि पील 45 साल पहले अमेरिका की यात्रा मेरे जीवन की महत्वपूर्ण घटना थी। वहां मुझे अमेरिका के महान राजनीतिज्ञ और लेखक नॉर्मन विंसेट पील के एक आयोजन में भाग लेने का अवसर मिला। ‘पॉवर ऑफ पॉजिटिव थिकिंग’ नामक मशहूर किताब के इस लेखक ने वहां प्रवेश करते ही उपस्थित लोगों से पूछा, ‘आप लोग बड़े रिलैक्स लग रहे हैं, क्या कोई समस्या नहीं है आपको?’ सबने एक स्वर में कहा, हां समस्या तो है ही। इस पर उन्होंने फिर पूछा कि, ‘कितने लोग इससे छुटकारा पाना चाहते हैं।’ इस बात पर सबने हाथ खड़ा कर दिया। यह देखकर विंसेट पील ने बताया कि, ‘यहां आते समय उन्होंने एक ऐसी जगह देखी, जहां लोगों को कोई समस्या नहीं है। वहां लोग बड़े रिलैक्स हैं। ’ इस पर उपस्थित लोग उत्सुक हो गए। वे जानना चाहते थे कि आखिर ऐसी कौन-सी जगह है। विंसेट पील ने बड़े आराम से कहा, ‘वह जगह है-श्मशान घाट। क्या आप जाना चाहेंगे?’ दरअसल, जीवन तो समस्याओं का प्रतीक है। इसके कारण ही हर कदम बढ़ता है। समस्याओं के बिना जीवन की कल्पना संभव नहीं है।